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    विजया : पहाड़ के संपूर्ण विकास की पर्याय

    Valuable insights

    1.विजया को भांग नहीं, विजय कहना चाहिए: इस पौधे को 'भांग' कहना बाजारवाद की देन है; शास्त्रों में इसे 'विजय' कहा गया है, जो विजय दिलाने वाला पौधा माना जाता है और यह अथर्ववेद में पवित्र पौधों में से एक है।

    2.पर्यावरण शुद्धिकरण में विजया का महत्वपूर्ण योगदान: यह सामान्य पौधों से चार गुना अधिक ऑक्सीजन प्रदान करता है, जड़ों द्वारा नाइट्रोजन छोड़ने और भारी धातुओं (जैसे लेड) को सोखने से पर्यावरण शुद्ध होता है।

    3.आयुर्वेद में 191 शास्त्रीय औषधियों का आधार: आयुष मंत्रालय के फार्माकोपिया में विजया से 191 प्रकार की शास्त्रोक्त दवाएं सूचीबद्ध हैं, जो संग्रहणी (IBS) जैसी बीमारियों और एंडोकनाबिनोइड सिस्टम को सक्रिय करने में सहायक हैं।

    4.विजया के बीज हृदय स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम: विजया के बीज प्रोटीन और ओमेगा 3 व 6 फैटी एसिड से भरपूर होते हैं, जो हृदय रोगों की रोकथाम में मदद करते हैं और पहाड़ के लोगों में हृदय रोग कम पाए जाते हैं।

    5.पंचांग का संपूर्ण उपयोग औद्योगिक क्रांति का आधार: यह दुनिया का एकमात्र पौधा है जिसके पांचों अंग (पंचांग) का उपयोग रोटी, कपड़ा, मकान और दवा के लिए होता है, साथ ही इससे फाइबर और बायोइथेनॉल भी बनता है।

    6.प्रतिबंध का कारण औद्योगिक हितों का संरक्षण: 1938 में अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध का मुख्य कारण यह था कि विजया की बढ़ती लोकप्रियता शराब और एलोपैथिक दवाओं के बाजार को नुकसान पहुंचा रही थी।

    7.NDPS एक्ट का निर्माण विदेशी राजनीतिक दबाव का परिणाम: 1985 में NDPS एक्ट लागू करना अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के दबाव का परिणाम था, जिसने भारत की संप्रभुता और संसदीय प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया।

    8.स्वदेशी विजया प्रजाति को विदेशी बीजों से बचाना आवश्यक: विदेशी औद्योगिक भांग के बीज स्थानीय औषधीय विजया से परागित होकर उसकी आनुवंशिक शुद्धता (DNA) को सात पीढ़ियों में नष्ट कर सकते हैं, जो एक आर्थिक जाल है।

    9.नियमन से राज्य की अर्थव्यवस्था में भारी राजस्व वृद्धि संभव: उचित विनियमन और किसान-उन्मुख नीतियों से उत्तराखंड जैसे राज्यों की अर्थव्यवस्था में 7000 से 8000 करोड़ रुपये का राजस्व जोड़ा जा सकता है, जो शराब से भी अधिक हो सकता है।

    10.आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा विजया की खेती का समर्थन: जगद्गुरु शंकराचार्य पुरी जैसे वरिष्ठ संत भी विजया की खेती को व्यवस्थित करने की वकालत करते हैं, जो इसके शास्त्रीय महत्व को पुनः स्थापित करता है।

    परिचय और 'विजय' नाम का महत्व

    इस पौधे को सामान्यतः भांग के नाम से जाना जाता है, परंतु वक्ता इसे 'विजय' कहकर संबोधित करते हैं। यह नामकरण गंभीर कारणों पर आधारित है, क्योंकि भारतीय शास्त्रों में इस पौधे को विजय दिलाने वाला माना गया है। बाजारवाद और गलतफहमियों के कारण इस शब्द के चारों ओर कई मिथक गढ़े गए हैं, जिसने इसके वास्तविक महत्व को धुंधला कर दिया है। इस पौधे को पवित्रता और सम्मान के साथ देखना आवश्यक है ताकि इसके लाभों को समझा जा सके।

    भांग मैं नहीं कहता इसको इसको मैं विजय कहता हूं।

    अथर्ववेद में विजया का उल्लेख

    अथर्ववेद में इस पौधे को 'विजय' कहा गया है और आयुर्वेद में इसे पाँच सबसे पवित्र पौधों में से एक बताया गया है। पवित्र पौधे का अर्थ वह है जिसका पूजन किया जा सके और जिसे प्रणाम किया जा सके, जैसे तुलसी और पीपल। यह शास्त्रीय परंपरा दर्शाती है कि यह पौधा लाखों साल पुराना है और सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है।

    शास्त्रीय आधार और शिव पूजन में महत्व

    विष्णु पुराण और शिव पुराण में भगवान शिव की पूजा में विजया के महत्व का उल्लेख मिलता है। ईश्वर को अर्पित की जाने वाली वस्तुओं में प्रायः औषधीय गुण या सुपरफूड की विशेषता होती है। उदाहरण के लिए, हवन में चढ़ाया जाने वाला काला तिल एक सुपरफूड है, और पंचामृत भी पोषण से भरपूर होता है।

    • विष सेवन से होने वाले शारीरिक नुकसान को कम करना।
    • संहार के लिए तत्पर शंकर जी को शांत बनाए रखना।
    • शरीर को ठंडा रखने और दर्द सहने की क्षमता प्रदान करना।

    जहर खाने के बाद शरीर में उत्पन्न होने वाले बुखार को नियंत्रित करने के लिए मटकी, पेट की गर्मी शांत करने के लिए बेल, और दर्द निवारण के लिए विजया का लेप उपयोग करने की परंपरा निर्मित की गई। इस प्रकार, पूजन पद्धति में विजया का एक विशेष महत्व निहित है जो शारीरिक क्रियाओं पर आधारित है।

    पर्यावरण संरक्षण में विजया की भूमिका

    सनातन धर्म प्रकृति से प्रेम करता है, जबकि अन्य धर्मों में पृथ्वी को केवल उपयोग की वस्तु माना जाता है। विजया पर्यावरण के लिए अत्यंत लाभदायक है क्योंकि यह सामान्य पौधों की तुलना में चार गुनी अधिक ऑक्सीजन देती है, जो पहाड़ों पर ऑक्सीजन की कमी की समस्या के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, यह पौधा जैविक खेती (ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर) के लिए भी उपयोगी है।

    मृदा सुधार और भूस्खलन नियंत्रण

    विजया की जड़ें मिट्टी में नाइट्रोजन छोड़ती हैं और लेड जैसे भारी धातुओं को सोखकर विकिरण (रेडिएशन) को अवशोषित करती हैं, जिससे पर्यावरण शुद्ध होता है। इसकी जड़ें जमीन को मजबूती से पकड़कर रखती हैं, जिसके परिणामस्वरूप भूस्खलन की घटनाओं में कमी आती है। यह पौधा बिना अधिक मेहनत के कहीं भी उगने की क्षमता रखता है।

    आयुर्वेदिक स्वास्थ्य लाभ और शारीरिक क्रिया

    आयुर्वेद में, विजया से 191 प्रकार की दवाएं बनती हैं जिन्हें आयुष मंत्रालय के फार्माकोपिया में 'शास्त्रोक्त' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। ये औषधियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी हजारों साल पहले थीं। यह इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) या संग्रहणी जैसी पेट संबंधी बीमारियों के लिए रामबाण इलाज मानी जाती है, जिसका एलोपैथी में कोई निश्चित इलाज नहीं है।

    एंडोकनाबिनोइड सिस्टम पर प्रभाव

    • लिवर के लिए फायदेमंद होना।
    • लिबिडो (यौन इच्छा) बढ़ाना।
    • मानसिक स्वास्थ्य (मेंटल हेल्थ) में सुधार करना।

    यह पौधा मस्तिष्क में मौजूद एंडोकनाबिनोइड सिस्टम (ECS) को सक्रिय करता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, शरीर का संचार धीमा होता जाता है; विजया इस संचार को सुचारू बनाकर इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाती है, जिससे व्यक्ति स्वाभाविक रूप से अधिक स्वस्थ होता है और लंबा जीवन प्राप्त करता है, इसलिए इसे 'विजय प्रदायनी' भी कहा जाता है।

    बीज का पोषण मूल्य और खेती की सरलता

    पहाड़ों में भांग के बीज (जिन्हें भंगोड़ा भी कहा जाता है) का सेवन हृदय रोगों को कम करने में सहायक सिद्ध हुआ है। इसके बीज में लगभग 35% प्रोटीन होता है, साथ ही इसमें ओमेगा 3 और 6 जैसे सभी आवश्यक फैटी एसिड मौजूद होते हैं, जो हृदय स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं।

    खेती की सरलता और स्थिरता

    यह पौधा संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास कार्यक्रम (SDG) के अंतर्गत आता है और इसकी खेती अत्यंत सरल है। इसे कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होती और यह लगभग 4 डिग्री सेल्सियस से लेकर 50 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान में पनप सकता है। यह उन 10 राज्यों के लिए आदर्श फसल है जहाँ खेती करना कठिन है।

    औद्योगिक उपयोगिता और पंचांग का महत्व

    यह दुनिया का एकमात्र ऐसा पौधा है जिसके पंचांग (पौधे के पाँचों अंग) का पूर्ण उपयोग होता है। यह रोटी, कपड़ा, मकान और दवा की बुनियादी जरूरतों को पूरा करता है। इसके औद्योगिक उपयोगों में प्लाईवुड का विकल्प, कागज निर्माण और बायोइथेनॉल का उत्पादन शामिल है।

    उपयोग क्षेत्र
    विशेषता
    फाइबर निर्माण
    लोहे से 10 गुना अधिक मजबूत फाइबर, जो प्लास्टिक से पहले जहाजों की रस्सी बनाने में प्रयुक्त होता था।
    इंसुलेशन
    उत्कृष्ट थर्मल वैल्यू प्रदान करता है, जिससे ईंटें बनती हैं जो ठंड में गर्म और गर्मी में ठंडी रहती हैं।
    कालीन उद्योग
    मध्य पूर्व में महंगे कालीन (हेम) बनाने में आधार सामग्री के रूप में उपयोग।

    यह फाइबर पानी पड़ने पर और मजबूत होता है, जबकि अन्य फाइबर कमजोर हो जाते हैं। यहाँ तक कि महंगी बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज जैसी कारों के डैशबोर्ड और सीट कवर बनाने में भी विजया के रेशे का उपयोग किया गया है।

    प्रतिबंध का इतिहास: औद्योगिकीकरण और विदेशी प्रभाव

    विजया पर प्रतिबंध लगाने का इतिहास 1900 के दशक की शुरुआत से जुड़ा है जब अमेरिका में औद्योगिकीकरण शुरू हुआ। कारखानों में काम करने के लिए लाए गए लोगों ने इस पौधे का सेवन शुरू किया, क्योंकि यह प्रेम बढ़ाता था और लोगों को झगड़ालू होने से रोकता था। यह उस समय विकसित हो रहे महिलाओं के लिए सिगरेट बाजार के विपरीत था।

    अमेरिकी दबाव और आर्थिक निहितार्थ

    जब इस पौधे के सेवन से नस्लीय सीमाओं का उल्लंघन हुआ, तो 1938 में अमेरिका ने इसे प्रतिबंधित करने वाला पहला देश बना। इस प्रतिबंध ने शराब और दवा कंपनियों के हितों की रक्षा की, क्योंकि विजया को 'इंडियन पेनिसिलिन' कहा जाता था और यह उनकी बिक्री को प्रभावित कर रही थी। यह दबाव बाद में यूरोप और फिर भारत पर डाला गया।

    NDPS अधिनियम और राजनीतिक निर्णय

    1961 के बाद, किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री में विजया के पौधे को लेकर कोई कदम उठाने की हिम्मत नहीं हुई, जब तक कि 1985 में राजीव गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के दबाव में इस पर कार्रवाई नहीं की। भारी संसदीय समर्थन (लगभग 400 से अधिक सांसद) होने के बावजूद, राजीव गांधी ने सदन में इस बिल पर चर्चा नहीं होने दी, जो संसद की मर्यादा और देश की सार्वभौमिकता का उल्लंघन था।

    संविधान की भावनाओं का और देश की सार्वभौमिकता जो है उसको चैलेंज

    इस निर्णय ने सनातन धर्म की पूजा पद्धति, आयुर्वेद और पर्यावरण संबंधी वैदिक ज्ञान को न केवल नकारा, बल्कि उन्हें नष्ट किया। यह सब एलोपैथी को बढ़ावा देने के लिए किया गया, जिसकी दवाएं पेट्रोकेमिकल बाय-प्रोडक्ट्स पर आधारित हैं, जबकि विजया जंगल में मुफ्त उपलब्ध थी और उसकी एपीआई हम स्वयं बना सकते थे।

    आयुर्वेद पर एलोपैथी का प्रभाव

    यह स्पष्ट है कि उस समय के नियम और कानून ऐसे बनाए गए थे कि लोग अपनी संस्कृति और व्यवस्थाओं पर नहीं चल सकते थे। एलोपैथी को बढ़ावा देने के लिए आयुर्वेद को दबाया गया, क्योंकि सिंथेटिक ड्रग्स और पेट्रोकेमिकल आधारित दवाओं में तत्काल वित्तीय लाभ दिख रहा था, जबकि विजया से प्राप्त होने वाली औषधियां जैविक थीं।

    वैश्विक वर्गीकरण और स्वदेशी बीज का संरक्षण

    पश्चिमी वैज्ञानिक वर्गीकरण में कैनबिस को सैटिवा (औद्योगिक), इंडिका (नशीला/औषधीय) और रुद्रालिस में बांटा गया है। हालांकि, भारत की मूल प्रजाति, जिसे 'विजया' कहा जाता है, इन श्रेणियों में ठीक से फिट नहीं बैठती और इसमें उच्च औषधीय गुण होते हैं। चिंता का विषय यह है कि विदेशी संस्थाओं के पास भारत के बीजों का दस्तावेजीकरण है, जबकि देश से बीज बाहर नहीं जा सकते।

    परागण का जाल और आर्थिक जाल

    विजया का पौधा आसानी से परागित होता है। यदि औद्योगिक भांग (सैटिवा) को औषधीय विजया के पास उगाया जाता है, तो सात पीढ़ियों के भीतर स्थानीय बीज अपनी औषधीय क्षमता खो सकते हैं। विदेशी शक्तियां इसी बात का फायदा उठाती हैं, वे बीज लाकर किसानों को महंगे आयातित बीजों पर निर्भर बना देती हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था नष्ट होती है।

    • फेंसिंग की ऊँचाई 8 फीट तक अनिवार्य करना।
    • ब्लॉकचेन तकनीक और कैमरे लगाकर खेतों की निगरानी करना।
    • सरकारी स्तर पर ऑर्गेनिक विजया का संग्रह और वितरण सुनिश्चित करना।

    नीतिगत विफलताएं और आर्थिक विकास की संभावनाएं

    उत्तराखंड जैसे राज्यों में गलत नीतियों के कारण विकास रुका हुआ है। यदि विजया की खेती को सही तरीके से विनियमित किया जाता, तो राज्य को केवल भांग से 7000 से 8000 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हो सकता था, जो शराब से आने वाले राजस्व से अधिक होता। नेताओं और अधिकारियों में पुरानी कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए नियमों को बदलने का डर व्याप्त है।

    • शराब या अफीम की तरह विजया का विनियमन मॉडल लागू करना।
    • किसानों को सहकारी समितियों (कोऑपरेटिव) के माध्यम से जोड़ना, विशेषकर महिलाओं और पूर्व सैनिकों को।
    • बीज पंजीकरण जैसी बाधाओं को हटाना, जिससे बीज की कीमत चार गुना बढ़ गई थी।

    सहकारिता मॉडल अपनाने से पैसा सीधे गाँवों में जाएगा और सर्कुलर इकोनॉमी बनेगी, जिससे सरकार को जीएसटी का लाभ भी मिलेगा। यह एक ब्लू ओशन प्लांट है जिस पर अभी तक काम नहीं हुआ है, और इस पर किया गया कोई भी निवेश अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाएगा।

    आध्यात्मिक समर्थन और भविष्य की दिशा

    आध्यात्मिक क्षेत्र में विजया को लेकर कोई संदेह नहीं है। देश के सबसे बुजुर्ग शंकराचार्य, शंकराचार्य पुरी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भांग अत्यधिक सेवन औषधि संग्रह और इलाज के काम आती है और सरकार को इसकी खेती व्यवस्थित करनी चाहिए। यह समर्थन राजनीतिक भय के विपरीत खड़ा है जो सनातन धर्म की परंपराओं को तोड़ने का कारण बना।

    युवाओं के लिए संदेश और सर्कुलर इकोनॉमी

    युवाओं के लिए संदेश यह है कि एआई के कारण नौकरियों के खत्म होने के दौर में, उन्हें वापस लौटकर सर्कुलर इकोनॉमी और सहकारिता पर आधारित स्थानीय उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। विजया के गैर-नशीले हिस्सों का उपयोग उद्योग खड़ा करने के लिए किया जा सकता है। अंतिम लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि इस पौधे को वह सम्मान मिले जो इसकी मूल ताकत है।

    Questions

    Common questions and answers from the video to help you understand the content better.

    भांग को शास्त्रों में 'विजय' क्यों कहा जाता है और इसका क्या महत्व है?

    भांग को 'विजय' इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह विजय दिलाने वाला पौधा माना गया है। यह अथर्ववेद में वर्णित पाँच पवित्र पौधों में से एक है, जिसका अर्थ है कि यह पूजनीय है और इसका उपयोग आध्यात्मिक तथा औषधीय उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा है।

    विजया का पौधा पर्यावरण के लिए किस प्रकार लाभदायक है?

    विजया सामान्य पौधों की तुलना में चार गुना अधिक ऑक्सीजन देता है। इसकी जड़ें मिट्टी में नाइट्रोजन छोड़ती हैं, भारी धातुओं (जैसे लेड) को सोखती हैं, और मिट्टी को मजबूती से पकड़कर भूस्खलन को रोकने में मदद करती हैं।

    भारत में विजया पर प्रतिबंध लगाने के पीछे मुख्य औद्योगिक कारण क्या थे?

    प्रतिबंध का मुख्य कारण 1900 के दशक में शुरू हुए औद्योगिकीकरण के हितों की रक्षा करना था। विजया की लोकप्रियता शराब और एलोपैथी दवाओं के बाजार को प्रभावित कर रही थी, क्योंकि इसे 'इंडियन पेनिसिलिन' माना जाता था और यह पश्चिमी दवा कंपनियों के व्यापार के विपरीत थी।

    राजीव गांधी सरकार ने 1985 में भांग पर प्रतिबंध लगाने के लिए किस विदेशी दबाव का सामना किया?

    राजीव गांधी सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के दबाव में 1985 में NDPS एक्ट के तहत भांग पर प्रतिबंध लगाया। यह निर्णय भारतीय संस्कृति और संसदीय प्रक्रियाओं की अनदेखी करते हुए लिया गया था।

    कैनबिस सैटिवा, इंडिका और विजया (मूल भारतीय प्रजाति) में मुख्य अंतर क्या हैं?

    कैनबिस सैटिवा मुख्य रूप से औद्योगिक उपयोग के लिए है जिसमें नशा कम होता है। कैनबिस इंडिका झाड़ीदार होती है और इसमें तेज नशा होता है। मूल भारतीय प्रजाति 'विजया' इन दोनों से भिन्न है और यह मुख्य रूप से औषधीय गुणों से भरपूर है, जिसे पश्चिमी वर्गीकरण में ठीक से शामिल नहीं किया गया है।

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